80 में से 78 बाहर वालों को रोजगार, फिर भी कहते हो 75 पार, पीएचडी पास को लगा दिया चौकीदार, फिर भी कहते हो 75 पार, 80 को दिया मार, फिर भी कहते हो 75 पार, साथियों 29 दिन बच गए हो जाओ तैयार, अबकी बार कर दो भाजपा को हरियाणा से बाहर। ऐसा मैं नहीं
कह रहा हूं, दुष्यंत चौटाला जी के भाषण का एक हिस्सा इसको समझ लीजिये. क्षेत्रीय
दल हरियाणा में इस बार जोर शोर से चुनावी मैदान में पहुंच गई है।
हरियाणा में कई दिग्गज नेता परिवारवाद से बाहर
निकल गए और कुछ परिवारवाद में ही उलझे पड़े हुए है. कांग्रेस हरियाणा में कहा और
किस मुकाम पर है, किसी को पता नहीं है। कुमारी शैलेजा एक अच्छी नेत्री से ज्यादा
कांग्रेस की वफादार है.इस कारण से एकजुटता की जगह पार्टी में दरार है.
रोहतक में कड़ी टक्कर बीजेपी बनाम क्षेत्रीय
पार्टियों के बीच बनी हुई है. सिरसा में अभी तक गोपाल कांडा #gopalkanda, हरियाणा लोकहित पार्टी का अपनी ही वर्चस्व है। गोपाल कांडा की
अलग विचारधारा होने के कारण उनकी पार्टी प्रमुखता मिल रही है। लेकिन सिरसा में
गोपाल कांडा जीते हुए उम्मीदवार के तौर पर बताए जा रहे है,लेकिन राजनीति ज्योतिषि
इस आकंलन को जल्दीबाजी बता रहे है। फिर भी राजनीति का मुख्य समीकरण उम्मीदवारों की
घोषणा के बाद ही पता चलेगा।
भाजपा 75 पार का
नारा दे रही, मौजूदा विधायकों का टिकट कट सकता
भाजपा लोकसभा चुनाव में 10 की 10 सीटें जीतकर विधानसभा में 75 पार का नारा देकर चल रही है। लोकसभा चुनाव के बाद से लगातार प्रचार
अभियान जारी है। सीएम पूरे प्रदेश में घूमकर जनआशीर्वाद यात्रा कर चुके हैं। भाजपा
में मौजूदा स्थिति ये है कि एक सीट पर कई-कई दावेदार हैं। दूसरी पार्टियों के नेता
अपनी पार्टियां छोड़कर भाजपा में शामिल हो रहे हैं। ऐसे में सीटों की दावेदारी
ज्यादा बढ़ गई है। खुद सीएम मान चुके हैं कि कुछ मौजूदा विधायकों की टिकट कटना तय
है। चाहे जो मर्जी हो लेकिन इस समय सबसे मजबूत स्थिति में भाजपा है।
हुड्डा
के आने से रेस में आई कांग्रेस
लोकसभा चुनाव में महज हिसार सीट को
छोड़ दें तो कांग्रेस 9 सीटों पर दूसरे नंबर पर रही। इस
चुनाव में भी भाजपा की टक्कर कांग्रेस से मानी जा रही है। तंवर को प्रदेशाध्यक्ष
पद से हटा दिए जाने के बाद सैलजा को प्रदेशाध्यक्ष बनाया गया है और हुड्डा को
सीएलपी लीडर का पद दिया गया है। भले ही नेतृत्व परिवर्तन हो गया हो लेकिन गुटबाजी
अभी भी कम नहीं हुई है। हां, हुड्डा के आ जाने से कांग्रेस
रेस में जरूर आ गई है लेकिन देरी से फैसला होने का नुकसान भी उन्हें उठाना पड़ रहा
है। अब इतना समय नहीं बचा है कि वे संगठन मजबूत कर सकें। वे सीधे चुनाव में उतरने
जा रहे हैं। वहीं भूपेंद्र हुड्डा और कुलदीप बिश्नोई सीबीआई, ईडी और आयकर विभाग के चक्कर लगा रहे हैं।
इनेलो से
मजबूत हुई जेजेपी
2014 में भाजपा के बाद 19 सीटें लेकर दूसरा सबसे बड़ा दल बनने वाली इनेलो अब बिल्कुल बिखर
चुकी है। चौटाला परिवार टूटने के बाद जजपा का गठन हुआ। जजपा ने सबसे ज्यादा इनेलो
को नुकसान पहुंचाया है। इनेलो के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष
से लेकर पार्टी के बड़े नेता और कई मौजूदा विधायक इस्तीफा देकर जजपा, कांग्रेस और भाजपा में शामिल हो चुके हैं। ऐसे में जजपा मौजूदा समय
में इनेलो से मजबूत नजर आ रही है। इनेलो के लिए प्रत्याशी ढूंढना ही इस चुनाव में
बड़ी चुनौती होने वाला है। अभय घोषणा कर चुके हैं कि पार्टी 50 प्रतिशत युवाओं को टिकट देगी, पार्टी में पुराने नेता छोड़कर
जा चुके हैं। वहीं जजपा का किसी पार्टी से गठबंधन नहीं हो सका है। जजपा 90 सीटों पर उम्मीदवार उतारने का दावा कर रही है लेकिन उसके पास भी
उम्मीदवारों का टोटा है। ऐसे में इनेलो और जजपा दोनों के लिए चुनौती है।
आप और
बसपा का भी किसी से नहीं गठबंधन दोनों उतरेंगे अलग-अलग
आम आदमी पार्टी का लोकसभा चुनाव में
जजपा से गठबंधन था लेकिन उनका गठबंधन विधानसभा चुनाव आते-आते टूट गया। वहीं बसपा
की बात करें तो बसपा ने पहले इनेलो से जींद उपचुनाव में गठबंधन किया था, हार के बाद वह टूट गया। लोकसभा चुनाव में उन्होंने राजकुमार सैनी
की लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी से हाथ मिलाया, हार के बाद वह भी टूट गया। इसके
बाद विधानसभा के लिए जजपा से गठबंधन किया था लेकिन वह चुनाव से पहले ही टूट गया
है। बसपा भी अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा कर चुकी है। ऐसे में ये दल भी अकेले चुनाव
मैदान में उतरेंगे। इससे स्पष्ट है कि विपक्ष इस समय बिखराव की स्थिति में है।
हलोपा
के दो ही उम्मीदवार होंगे मैदान
सिरसा
और रनियां दोनों ही जगहों पर कांडा बंधुओं का वर्चस्व रहेगा। गोपाल कांडा के तेवर
आज बी बरकरार है, सिरसा में अकेले नेता है, जो बीजेपी को कड़ी टक्कर देंगे। बीजेपी
के तरफ से उम्मीदवार कौन होगा, यह कहां नहीं जा सकता है, क्योंकि पार्टी में
उम्मीदवारों की लिस्ट लंबी है। रानियां में हलोपा के तरफ से गोबिंद कांडा
उम्मीदवार होंगे। गोपाल कांडा खुद गोबिंद कांडा के लिये चुनावी प्रचार में हिस्सा
लेंगे। गोपाल कांडा जी का कहना है कि इस बार उनका मुख्य फोकस दो सीटों को विजयी
करना है, यहीं से पार्टी की नींव की नई शुरूआत होगी। क्योंकि पिछला अनुभव ज्यादा
बेहतर नहीं होने के कारण कोई भी रिस्क उठाना के मूड में नहीं है।
#gopalkanda, #gobindkanda
भाजपा लोकसभा चुनाव में 10 की 10 सीटें जीतकर विधानसभा में 75 पार का नारा देकर चल रही है। लोकसभा चुनाव के बाद से लगातार प्रचार अभियान जारी है। सीएम पूरे प्रदेश में घूमकर जनआशीर्वाद यात्रा कर चुके हैं। भाजपा में मौजूदा स्थिति ये है कि एक सीट पर कई-कई दावेदार हैं। दूसरी पार्टियों के नेता अपनी पार्टियां छोड़कर भाजपा में शामिल हो रहे हैं। ऐसे में सीटों की दावेदारी ज्यादा बढ़ गई है। खुद सीएम मान चुके हैं कि कुछ मौजूदा विधायकों की टिकट कटना तय है। चाहे जो मर्जी हो लेकिन इस समय सबसे मजबूत स्थिति में भाजपा है।
लोकसभा चुनाव में महज हिसार सीट को छोड़ दें तो कांग्रेस 9 सीटों पर दूसरे नंबर पर रही। इस चुनाव में भी भाजपा की टक्कर कांग्रेस से मानी जा रही है। तंवर को प्रदेशाध्यक्ष पद से हटा दिए जाने के बाद सैलजा को प्रदेशाध्यक्ष बनाया गया है और हुड्डा को सीएलपी लीडर का पद दिया गया है। भले ही नेतृत्व परिवर्तन हो गया हो लेकिन गुटबाजी अभी भी कम नहीं हुई है। हां, हुड्डा के आ जाने से कांग्रेस रेस में जरूर आ गई है लेकिन देरी से फैसला होने का नुकसान भी उन्हें उठाना पड़ रहा है। अब इतना समय नहीं बचा है कि वे संगठन मजबूत कर सकें। वे सीधे चुनाव में उतरने जा रहे हैं। वहीं भूपेंद्र हुड्डा और कुलदीप बिश्नोई सीबीआई, ईडी और आयकर विभाग के चक्कर लगा रहे हैं।
2014 में भाजपा के बाद 19 सीटें लेकर दूसरा सबसे बड़ा दल बनने वाली इनेलो अब बिल्कुल बिखर चुकी है। चौटाला परिवार टूटने के बाद जजपा का गठन हुआ। जजपा ने सबसे ज्यादा इनेलो को नुकसान पहुंचाया है। इनेलो के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष से लेकर पार्टी के बड़े नेता और कई मौजूदा विधायक इस्तीफा देकर जजपा, कांग्रेस और भाजपा में शामिल हो चुके हैं। ऐसे में जजपा मौजूदा समय में इनेलो से मजबूत नजर आ रही है। इनेलो के लिए प्रत्याशी ढूंढना ही इस चुनाव में बड़ी चुनौती होने वाला है। अभय घोषणा कर चुके हैं कि पार्टी 50 प्रतिशत युवाओं को टिकट देगी, पार्टी में पुराने नेता छोड़कर जा चुके हैं। वहीं जजपा का किसी पार्टी से गठबंधन नहीं हो सका है। जजपा 90 सीटों पर उम्मीदवार उतारने का दावा कर रही है लेकिन उसके पास भी उम्मीदवारों का टोटा है। ऐसे में इनेलो और जजपा दोनों के लिए चुनौती है।
आम आदमी पार्टी का लोकसभा चुनाव में जजपा से गठबंधन था लेकिन उनका गठबंधन विधानसभा चुनाव आते-आते टूट गया। वहीं बसपा की बात करें तो बसपा ने पहले इनेलो से जींद उपचुनाव में गठबंधन किया था, हार के बाद वह टूट गया। लोकसभा चुनाव में उन्होंने राजकुमार सैनी की लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी से हाथ मिलाया, हार के बाद वह भी टूट गया। इसके बाद विधानसभा के लिए जजपा से गठबंधन किया था लेकिन वह चुनाव से पहले ही टूट गया है। बसपा भी अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा कर चुकी है। ऐसे में ये दल भी अकेले चुनाव मैदान में उतरेंगे। इससे स्पष्ट है कि विपक्ष इस समय बिखराव की स्थिति में है।
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