Friday, October 18, 2019
Sunday, October 13, 2019
Wednesday, October 2, 2019
सिरसा और रानियां में एकतरफा हलोपा का जलवा
सिरसा विधानसभा सीट के उम्मीदवारों पर लगाए जा
रहे सारे कयास समाप्त हो चुके हैं। बीजेपी और संघ के वफादार प्रदीप रितु सरिया को
टिकिट देकर चुनावी जंग शुरू होने से पहले ही खत्म कर दिया है। हरियाणा लोकहित
पार्टी के नेता गोपाल कांडा के आगे बीजेपी का कमजोर और निरंकुश उम्मीदवार टिक भी
नहीं पाएगा। हालांकि यह राजनीति जानकारों की भविष्यवाणी है।
सिरसा
की जनता का आवाज और काम एवं मदद के मामले सबसे बड़े नेता के रूप में उभरे हलोपा के
नेता gopalkanda और रानियां विधानसभा सीट के उम्मीदवार गोबिंद कांडा का कोई तोड़
नहीं है। 1 अक्टूबर को नामांकन फार्म के समय जो शक्ति प्रदर्शन किया, वो देखने
लायक था। सिरसा की सड़कों पर जनता की हुजूम ने इस बात को साबित कर दिया कि सिरसा
की जनता आज भी उनको देखना, सुनना पसंद करती है। सिरसा एक धार्मिक नगरी है और यहां
के नेताओं का धार्मिक लगाव भी रहा है। गोपाल और गोबिंद कांडा भी इससे अछूते नहीं
है। समाज सेवा, जनकल्याण सहित कई योजनाएं वो खुद अपने ट्रस्ट के माध्यम से चलाते
है। दोनों भाईयों का विशेष लगाव जनसेवा में देखने को मिलता है। सिरसा और रानियां
क्षेत्र में बेटियों की शादी हो या माता का जागरण। परिवार के सदस्य की तरह लोगों
की मदद करना। यहीं उनकी इस क्षेत्र में पहचान बन चुकी है।
ट्रस्ट के माध्यम से आंख का इलाज भी कराया जा रहा है। सिरसा और रानियां में
जगह- जगह मोबाइल एंबुलेंस कैंप संचालित किये जा रहे है। इसके अलावा ट्रस्ट के
माध्यम से कैंसर जैसी बड़ी बीमारी का निशुल्क इलाज कराने का बीड़ा इन्हीं दोनों
भाईयों ने उठाया है, जो कि काबिलेतारिफ है। कैंसर बीमारी का इलाज बहुत ज्यादा
महंगा होने के कारण कई परिवार सही तरीके से इलाज करवा नहीं पाते है, लेकिन गोपाल
और गोबिंद कांडा दोनों भाई ने इस कार्य के लिये भी तत्पर है, जबकि सरकार में न
होते हुए सरकार से बेहतर काम सिरसा और रानियां क्षेत्र के लिये कर रहे है।
एक
मुलाकात के दौरान गोपाल कांडा ने साफ तौर पर कहा कि राजनीति मेरे लिये एक सेवा है।
मैं राज सत्ता का सुख भोगने के लिये नहीं चुनाव में लड रहा हूं। मेरा काम जनता की
सेवा करना है, अभी तक मैं सत्ता से बाहर रहकर जनता की सेवा की। कई मामलों में
सरकार की मदद से बेहतर कार्य किये जा सकते है। मेरे पास अपना विजन है और इसी के
आधार पर मुझे काम करना है। वर्तमान में नेताओं के पास विजन की कमी है। पार्टी के
बदलौत जीतकर विधानसभा पहुंच जाते है, लेकिन शहर के विकास के लिये विजन नहीं होने
के कारण काम कुछ भी नहीं होता है।वर्तमान के विधायक इसके उदाहरण है और अब सतारूढ़
पार्टी ने इस विधायक को दरकिनार कर दिया है। इससे नुकसान जनता को हुआ है।
Friday, September 27, 2019
कांग्रेस और बीजेपी में खेमेबाजी, हलोपा पांच सीटों पर लड़ेगी चुनाव
हरियाणा
में विधानसभा चुनाव का बिगुल बज
चुका है। अब टिकटों के ऐलान की बारी है। टिकट के दावेदारों ने अपने राजनीतिक आकाओं
के यहां परिक्रमा शुरू कर दी। पिछले चुनाव में मोदी लहर पर सवार हो पहली बार पूर्ण
बहुमत के साथ सत्ता में आई भाजपा हो या फिर कांग्रेस, जजपा, इनेलो, हलोपा और आप, सभी
कमर कसकर चुनावी रण में उतर पड़े हैं। प्रदेश तीन भागों में बंटा है। जीटी रोड
बेल्ट जो सोनीपत-पानीपत से लेकर पंचकूला तक है।
हलोपा
हरियाणा में पांच सीटों पर चुनाव लड़ेगी। पार्टी जल्द ही प्रत्याशियों की सूची
जारी करने वाली है। सिरसा और रनियां के अलावा रतिया और कलाबाड़ी से भी प्रत्याशी
घोषित करने के मूड में हैं। प्रत्याशियों के प्रोफाइल खंगाले जा रहे है और जल्द ही
सूची जारी की जाएगी। वहीं बीजेपी महिला और युवा प्रत्याशी को मैदान में उतारने की
तैयारी कर रही है। हलोपा के अध्यक्ष गोपाल कांडा से कई प्रत्याशी सीधे तौर पर संपर्क में है।
मध्य
हरियाणा जिसके बीच से सिरसा से बहादुरगढ़ जाने वाला नेशनल हाईवे 10 गुजरता है, जो
पहले नेशनल हाईवे 9 था।
शेष हिसार दक्षिण हरियाणा है। तीनों भागों और उनकी प्रकृति को ध्यान में रखकर ही
सभी दल रणनीति बनाएंगे। सत्तारूढ़ भाजपा ने लोकसभा चुनाव में क्लीन स्वीप, पांच नगर निगम और जींद उपचुनाव में मिली जीत से
उत्साहित भाजपा ने जहां 75 से
अधिक सीटें जीतने का लक्ष्य निर्धारित किया है, वहीं
बिखरे विपक्ष के सामने चुनौतियों का अपार अंबार लगा है। इस बार के चुनाव में मुख्य
मुकाबला राष्ट्रीय दलों में है, जबकि
क्षेत्रीय दल वजूद की लड़ाई लड़ते नजर आएंगे।
पिछले चुनाव की अपेक्षा इस बार राजनीतिक परिस्थितियां काफी बदली हुई हैं, लेकिन जिस तरह से विपक्ष बिखरा हुआ है, उससे भाजपा को अपने मिशन-75 पार की राह आसान नजर आ रही है। चौधरी देवीलाल और ओमप्रकाश चौटाला के परिवार में राजनीतिक विघटन भाजपा की राह आसान कर रहा है। ओमप्रकाश चौटाला के नेतृत्व वाले इनेलो की बागडोर उनके छोटे बेटे अभय सिंह चौटाला संभाले हैं तो इनेलो की कोख से निकली जननायक जनता पार्टी की बागडोर चौटाला के बड़े बेटे अजय सिंह और पोते दुष्यंत चौटाला के हाथ में है। रही बात कांग्रेस की तो वह आधा दर्जन खेमों में बंटी है।
INLD ने खोला वादों का पिटारा, सारा कर्ज माफ व किसानों को मुफ्त बिजली
आलाकमान ने हालांकि कद्दावर दलित नेता कुमारी सैलजा को प्रदेशाध्यक्ष की कुर्सी पर बैठाते हुए पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा को तीन अहम जिम्मेदारी सौंपी हैं, लेकिन सभी धड़ों को एकजुट करना आसान नहीं। प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाए गए अशोक तंवर, किरण चौधरी और कैप्टन अजय यादव हों या फिर कुलदीप बिश्नोई और रणदीप सुरजेवाला, भाजपा को कांग्रेस की फूट रास आ सकती है।
पूर्व सांसद राजकुमार सैनी की लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी से अलग होने के बाद जजपा से गठबंधन करने वाली बहुजन समाज पार्टी (बसपा) अब अकेले चुनाव में उतर रही है। लोकसभा चुनाव में बसपा से गठबंधन के कारण लोसुपा उम्मीदवार अधिकतर स्थानों पर तीसरे स्थान पर रहे थे, लेकिन अब समीकरण बदल गए हैं। उधर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी सभी सीटों पर चुनाव लड़ने को तैयार है। आप की हरियाणा इकाई के अध्यक्ष नवीन जयहिंद कई उम्मीदवारों की घोषणा कर चुके हैं। शिरोमणि अकाली दल (बादल) ने भी चुनाव लड़ने का एलान कर रखा है, जिसकी टिकटों का फैसला भाजपा हाईकमान को करना है।
पिछले चुनाव की अपेक्षा इस बार राजनीतिक परिस्थितियां काफी बदली हुई हैं, लेकिन जिस तरह से विपक्ष बिखरा हुआ है, उससे भाजपा को अपने मिशन-75 पार की राह आसान नजर आ रही है। चौधरी देवीलाल और ओमप्रकाश चौटाला के परिवार में राजनीतिक विघटन भाजपा की राह आसान कर रहा है। ओमप्रकाश चौटाला के नेतृत्व वाले इनेलो की बागडोर उनके छोटे बेटे अभय सिंह चौटाला संभाले हैं तो इनेलो की कोख से निकली जननायक जनता पार्टी की बागडोर चौटाला के बड़े बेटे अजय सिंह और पोते दुष्यंत चौटाला के हाथ में है। रही बात कांग्रेस की तो वह आधा दर्जन खेमों में बंटी है।
INLD ने खोला वादों का पिटारा, सारा कर्ज माफ व किसानों को मुफ्त बिजली
आलाकमान ने हालांकि कद्दावर दलित नेता कुमारी सैलजा को प्रदेशाध्यक्ष की कुर्सी पर बैठाते हुए पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा को तीन अहम जिम्मेदारी सौंपी हैं, लेकिन सभी धड़ों को एकजुट करना आसान नहीं। प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाए गए अशोक तंवर, किरण चौधरी और कैप्टन अजय यादव हों या फिर कुलदीप बिश्नोई और रणदीप सुरजेवाला, भाजपा को कांग्रेस की फूट रास आ सकती है।
पूर्व सांसद राजकुमार सैनी की लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी से अलग होने के बाद जजपा से गठबंधन करने वाली बहुजन समाज पार्टी (बसपा) अब अकेले चुनाव में उतर रही है। लोकसभा चुनाव में बसपा से गठबंधन के कारण लोसुपा उम्मीदवार अधिकतर स्थानों पर तीसरे स्थान पर रहे थे, लेकिन अब समीकरण बदल गए हैं। उधर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी सभी सीटों पर चुनाव लड़ने को तैयार है। आप की हरियाणा इकाई के अध्यक्ष नवीन जयहिंद कई उम्मीदवारों की घोषणा कर चुके हैं। शिरोमणि अकाली दल (बादल) ने भी चुनाव लड़ने का एलान कर रखा है, जिसकी टिकटों का फैसला भाजपा हाईकमान को करना है।
#gopalkanda
Thursday, September 26, 2019
सैलजा-हुड्डा की जोड़ी पर टिकी कांग्रेस की आस, हलोपा और क्षेत्रीय पार्टी को वजूद की तलाश
पिछले पांच सालों में बिखराव का शिकार रही कांग्रेस की उम्मीदें सैलजा-हुड्डा की नई जोड़ी पर टिकी हैं। कुलदीप बिश्नोई के नेतृत्व वाली हरियाणा जनहित कांग्रेस के कांग्रेस में विलय के बावजूद पार्टी खेमेबाजी से उबर नहीं पाई। दस साल तक मुख्यमंत्री रहे भूपेंद्र सिंह हुड्डा और उनकी टीम का पूरा समय अशोक तंवर को प्रदेश अध्यक्ष पद की कुर्सी से हटाने में बीत गया। आखिर में जाकर हुड्डा को अपनी मुहिम में सफलता मिली, लेकिन इतने कम समय में पार्टी नेताओं का मनोबल ऊंचाई तक पहुंचाना आसान नहीं। गुटों में बंटी कांग्रेस 2019 का चुनाव कितनी जिम्मेदारी और एकजुटता से लड़ पाएगी, इस पर सबकी निगाह टिकी है।
कांटों भरा होगा चौटाला परिवार का सफर
पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला के परिवार के बिखराव को खत्म करने के प्रयास सिरे नहीं चढ़े हैं। चाचा अभय सिंह चौटाला और भतीजे दुष्यंत चौटाला के बीच राजनीतिक मतभेदों के चलते इनेलो टूट गई और जननायक जनता पार्टी का जन्म हुआ। इसे मजबूरी कहें या फिर जरूरत, अब भी समय है। यदि चौटाला परिवार एकजुट नहीं हो पाता तो इन दलों का सियासी सफर कांटों भरा होगा।
सक्रिय हुए नवीन जयहिंद और राजकुमार सैनी
हरियाणा में तेजी से पैठ बना रही आम आदमी पार्टी स्वच्छ छवि के उम्मीदवारों की घोषणा कर माहौल को अपने पक्ष में बनाने की कोशिश में है। भिवानी जिले की सिवानी मंडी के रहने वाले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का हरियाणा से पुराना नाता है। आम आदमी पार्टी ने पिछला विधानसभा चुनाव नहीं लड़ा था। इस बार पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष पंडित नवीन जयहिंद ने प्रचार आरंभ कर दिया है।
हलोपा का लोकलुभावन घोषणाएं
हरियाणा लोकहित पार्टी का लोकलुभावन घोषणाएं कर दी है। हलोपा के अध्यक्ष गोपाल कांडा, #gopalkanda, का कहना है कि कैंसर हास्पिटल का निर्माण जल्द ही तारा बाबा जी ट्रस्ट के माध्यम से किया जाएगा। आपको यहां बता दें कि कैंसर का इलाज सिरसा में उपलब्ध नहीं होने के कारण कैंसर के मरीजों को दिल्ली या पंजाब लेकर जाना पड़ता है।
कांटों भरा होगा चौटाला परिवार का सफर
पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला के परिवार के बिखराव को खत्म करने के प्रयास सिरे नहीं चढ़े हैं। चाचा अभय सिंह चौटाला और भतीजे दुष्यंत चौटाला के बीच राजनीतिक मतभेदों के चलते इनेलो टूट गई और जननायक जनता पार्टी का जन्म हुआ। इसे मजबूरी कहें या फिर जरूरत, अब भी समय है। यदि चौटाला परिवार एकजुट नहीं हो पाता तो इन दलों का सियासी सफर कांटों भरा होगा।
सक्रिय हुए नवीन जयहिंद और राजकुमार सैनी
हरियाणा में तेजी से पैठ बना रही आम आदमी पार्टी स्वच्छ छवि के उम्मीदवारों की घोषणा कर माहौल को अपने पक्ष में बनाने की कोशिश में है। भिवानी जिले की सिवानी मंडी के रहने वाले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का हरियाणा से पुराना नाता है। आम आदमी पार्टी ने पिछला विधानसभा चुनाव नहीं लड़ा था। इस बार पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष पंडित नवीन जयहिंद ने प्रचार आरंभ कर दिया है।
हलोपा का लोकलुभावन घोषणाएं
हरियाणा लोकहित पार्टी का लोकलुभावन घोषणाएं कर दी है। हलोपा के अध्यक्ष गोपाल कांडा, #gopalkanda, का कहना है कि कैंसर हास्पिटल का निर्माण जल्द ही तारा बाबा जी ट्रस्ट के माध्यम से किया जाएगा। आपको यहां बता दें कि कैंसर का इलाज सिरसा में उपलब्ध नहीं होने के कारण कैंसर के मरीजों को दिल्ली या पंजाब लेकर जाना पड़ता है।
Wednesday, September 25, 2019
हरियाणा विधानसभा चुनाव : हलोपा का त्रिकोणीय समीकरण
विधानसभा चुनावों में क्षेत्रीय मुद्दे काफ़ी
हावी होते हैं लेकिन बीजेपी की जीत के लिए हरियाणा के राजनीतिक विश्लेषकों ने
हरियाणा कांग्रेस के अंदर चल रही गुटबाज़ी को प्रमुख तौर पर ज़िम्मेदार ठहराया.
वहीं हरियाणा लोकहित पार्टी त्रिकोणीय समीकरण की राह पर है।
हरियाणा कांग्रेस के बड़े नेता अब ख़ुद को सीएम पद पर देखना चाहते हैं और पार्टी के लिए काम करने की इच्छा उनमें कम दिखाई देती है. "सिरसा सीट से चुनाव लड़ने वाले अशोक तंवर पिछली बार भी लोकसभा चुनावों में हरियाणा कांग्रेस अध्यक्ष थे और इस बार भी थे. कांग्रेस में बहुत ज़्यादा गुटबंदी हैं. इतनी गुटबंदी थी कि वे ज़िला ईकाई भी नहीं गठित कर सके. कांग्रेस इस बार बिना संगठन के चुनाव में उतरी थी."
हरियाणा कांग्रेस के एक गुट के मुखिया अशोक तंवर तो दूसरे गुट के मुखिया पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा माने जाते हैं. इन चुनावों में भूपेंद्र हुड्डा ने जाट हार्टलैंड की दो प्रमुख सीटें- रोहतक, सोनीपत की टिकट अपने और अपने बेटे दीपेंद्र हुड्डा के लिए झटक ली. साथ ही करनाल और कुरूक्षेत्र भी अपने क़रीबी कुलदीप शर्मा और निर्मल सिंह को दिलाई थी.
भूपेंद्र हुड्डा की सीट को कांग्रेस के लिए सबसे सुरक्षित सीट माना जा रहा था लेकिन उन्हें डेढ़ लाख से भी ज़्यादा वोटों से बीजेपी के रमेश कौशिक ने हरा दिया. इसी सीट पर पिछली बार रमेश कौशिक तक़रीबन 77 हज़ार वोटों से जीते थे.
वहीं रोहतक में पहली बार बीजेपी को सीट मिली है. दीपेंद्र हुड्डा ने 2014 में कांग्रेस की लिए ये एकमात्र सीट जीती थी लेकिन इस बार लगभग सात हज़ार के अंतर से हार गए. इससे पहले जनसंघ की टिकट पर दो सांसद यहां से बने हैं. बीजेपी को जाट बनाम गैर-जाट की राजनीति का फायदा हुआ?हरियाणा की राजनीति को सालों से देखते आ रहे राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि जाट बनाम ग़ैर-जाट का मुद्दा था तो लेकिन इसका असर नतीजों पर नहीं था.
विशेलषक कहते है कि , "विपक्ष बिखरा हुआ था. कांग्रेस की गुटबाज़ी के अलावा इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) का बिखराव भी एक फैक्टर था. उसके दो-फाड़ होने के बाद जो वेक्यूम आया, उसे कांग्रेस नहीं भर पाई. इस बार जाट वोट दुविधा की वजह से बंट गए कि वे इनेलो में जाएं या कांग्रेस में.
जाटों ने भी बीजेपी को वोट दिया है. "हरियाणा की राजनीति का इतिहास देखें तो भजनलाल अपने आप को जाट साबित करने की कोशिश करते रहते थे. लेकिन जब जाटों ने उन्हें जाट स्वीकार करने से मना कर दिया तो उन्होंने जाट बनाम ग़ैर जाट की राजनीति शुरू कर दी थी और उन्हें इसका फ़ायदा भी हुआ. 2009 के चुनाव में वे कांग्रेस से अलग हो गए थे."
वे अपनी बात आगे बढ़ाते हैं, "2009 में कांग्रेस को 9 सीटें तो मिली और एक भजनलाल को भी और कुछ महीने बाद ही विधानसभा में कांग्रेस को 40 सीटें ही आईं. बहुमत से 5 सीटें कम रही थी. यानी गैर-जाटों ने कांग्रेस को नहीं अपनाया था. इस बार ये मुद्दा बीजेपी के लिए काम कर रहा है."
हरियाणा में राष्ट्र की सुरक्षा का मुद्दा भी काम करता है क्योंकि यहां से बहुत लोग फौज में जाते हैं, इसलिए ये कहना ग़लत नहीं होगा कि जाटों ने भी बीजेपी को इस चुनाव में वोट दिया है.
इनेलो और जेजेपी का क्या है भविष्य
हरियाणा में आमतौर पर तिकोना मुक़ाबला होता रहा था जिसमें इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) प्रमुख ओम प्रकाश चौटाला की एक भूमिका होती थी. चौधरी देवीलाल की विरासत पर चल रही पार्टी अचानक पिछले साल दो फाड़ हो गई. ओमप्रकाश चौटाला के पौत्र दुष्यंत चौटाला ने अलग होकर जननायक जनशक्ति पार्टी बना ली.
लेकिन इन चुनावों में इनेलो के सभी उम्मीदवारों की ज़मानत भी ज़ब्त भी हो गई. साथ ही इस बार जेजेपी को भी आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन का कोई फ़ायदा नहीं हुआ.
विधानसभा चुनावों में जेजेपी और इनेलो को इन चुनावों में फायदा नहीं होगा क्योंकि मतदाता नाराज़ है. उनका कहना है, "जब इनेलो के बिखराव से पहले बसपा का समझौता हुआ तो लगा कि इनकी सरकार आ सकती है. लेकिन इनेलो के बिखराव ने मतदाता को बेचैन कर दिया और इन लोकसभा चुनाव में उनका वोट कांग्रेस और बीजेपी में चला गया."
वहीं फिलहाल इनेलो संभाल रहे अभय चौटाला की इतनी स्वीकार्यता नहीं है. हालांकि उनके पिता ओम प्रकाश चौटाला को भी अपनी स्वीकार्यता बनाने में वक्त लगा था. जब देवीलाल ने उन्हें अपना उत्तराधिकारी बनाया तो उनके ख़िलाफ़ पार्टी में भी विद्रोह हुआ था. एमएलए पार्टी छोड़ गए थे और आज एक बार फिर वही स्थिति है."
बीजेपी दोहरा पाएगी विधानसभा में प्रदर्शन
इन लोकसभा चुनावों में कांग्रेस हिसार सीट को छोड़कर सभी सीटों पर दूसरे स्थान पर रही है. इसलिए माना जा रहा है कि विधानसभा में कांग्रेस और बीजेपी में ही सीधी टक्कर देखने को मिलेगी.
21 अक्टूबर को विधानसभा चुनाव के मतदान होंगे और इतनी जल्दी कांग्रेस के लिए वापसी करना मुश्किल है. लोकसभा चुनावों में बीजेपी को 90 हल्कों में से 79 हल्कों में बढ़त मिली है. पिछली बार भी बीजेपी ने 47 सीटें जीती थी. ऊपर से कांग्रेस में अभी दोषारोपण का दौर चल रहा है. हुड्डा कैंप के लोग अशोक तंवर के इस्तीफ़े की मांग कर रहे हैं."
विधानसभा के नतीजे लोकसभा से थोड़े अलग होंगे क्योंकि मतदाता समझदार है कि उसे पंचायत चुनाव में किसे चुनना है, नगर निगम में किसे चुनना है और लोकसभा में किसके लिए वोट करना है.
लेकिन वे राज्य की खट्टर सरकार को भी श्रेय देते हैं कि बीजेपी सरकार ने ग्रुप डी की नौकरियों का जो नतीजा निकाला उसका असर मतदाता पर पड़ा.मनोहर लाल खट्टर के कार्यकाल को भी लोगों ने सराहा है ख़ासकर नौकरियों में पारदर्शिता और ऑनलाइन तबादलों की वजह से. लेकिन ये भी है कि लोकसभा में लोग उम्मीदवार के नाम पर कम और मोदी के नाम पर वोट कर रहे थे. तो अभी नतीजों को लेकर कुछ साफ़ नहीं कहा जा सकता.
हरियाणा कांग्रेस के बड़े नेता अब ख़ुद को सीएम पद पर देखना चाहते हैं और पार्टी के लिए काम करने की इच्छा उनमें कम दिखाई देती है. "सिरसा सीट से चुनाव लड़ने वाले अशोक तंवर पिछली बार भी लोकसभा चुनावों में हरियाणा कांग्रेस अध्यक्ष थे और इस बार भी थे. कांग्रेस में बहुत ज़्यादा गुटबंदी हैं. इतनी गुटबंदी थी कि वे ज़िला ईकाई भी नहीं गठित कर सके. कांग्रेस इस बार बिना संगठन के चुनाव में उतरी थी."
हरियाणा कांग्रेस के एक गुट के मुखिया अशोक तंवर तो दूसरे गुट के मुखिया पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा माने जाते हैं. इन चुनावों में भूपेंद्र हुड्डा ने जाट हार्टलैंड की दो प्रमुख सीटें- रोहतक, सोनीपत की टिकट अपने और अपने बेटे दीपेंद्र हुड्डा के लिए झटक ली. साथ ही करनाल और कुरूक्षेत्र भी अपने क़रीबी कुलदीप शर्मा और निर्मल सिंह को दिलाई थी.
भूपेंद्र हुड्डा की सीट को कांग्रेस के लिए सबसे सुरक्षित सीट माना जा रहा था लेकिन उन्हें डेढ़ लाख से भी ज़्यादा वोटों से बीजेपी के रमेश कौशिक ने हरा दिया. इसी सीट पर पिछली बार रमेश कौशिक तक़रीबन 77 हज़ार वोटों से जीते थे.
वहीं रोहतक में पहली बार बीजेपी को सीट मिली है. दीपेंद्र हुड्डा ने 2014 में कांग्रेस की लिए ये एकमात्र सीट जीती थी लेकिन इस बार लगभग सात हज़ार के अंतर से हार गए. इससे पहले जनसंघ की टिकट पर दो सांसद यहां से बने हैं. बीजेपी को जाट बनाम गैर-जाट की राजनीति का फायदा हुआ?हरियाणा की राजनीति को सालों से देखते आ रहे राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि जाट बनाम ग़ैर-जाट का मुद्दा था तो लेकिन इसका असर नतीजों पर नहीं था.
विशेलषक कहते है कि , "विपक्ष बिखरा हुआ था. कांग्रेस की गुटबाज़ी के अलावा इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) का बिखराव भी एक फैक्टर था. उसके दो-फाड़ होने के बाद जो वेक्यूम आया, उसे कांग्रेस नहीं भर पाई. इस बार जाट वोट दुविधा की वजह से बंट गए कि वे इनेलो में जाएं या कांग्रेस में.
जाटों ने भी बीजेपी को वोट दिया है. "हरियाणा की राजनीति का इतिहास देखें तो भजनलाल अपने आप को जाट साबित करने की कोशिश करते रहते थे. लेकिन जब जाटों ने उन्हें जाट स्वीकार करने से मना कर दिया तो उन्होंने जाट बनाम ग़ैर जाट की राजनीति शुरू कर दी थी और उन्हें इसका फ़ायदा भी हुआ. 2009 के चुनाव में वे कांग्रेस से अलग हो गए थे."
वे अपनी बात आगे बढ़ाते हैं, "2009 में कांग्रेस को 9 सीटें तो मिली और एक भजनलाल को भी और कुछ महीने बाद ही विधानसभा में कांग्रेस को 40 सीटें ही आईं. बहुमत से 5 सीटें कम रही थी. यानी गैर-जाटों ने कांग्रेस को नहीं अपनाया था. इस बार ये मुद्दा बीजेपी के लिए काम कर रहा है."
हरियाणा में राष्ट्र की सुरक्षा का मुद्दा भी काम करता है क्योंकि यहां से बहुत लोग फौज में जाते हैं, इसलिए ये कहना ग़लत नहीं होगा कि जाटों ने भी बीजेपी को इस चुनाव में वोट दिया है.
इनेलो और जेजेपी का क्या है भविष्य
हरियाणा में आमतौर पर तिकोना मुक़ाबला होता रहा था जिसमें इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) प्रमुख ओम प्रकाश चौटाला की एक भूमिका होती थी. चौधरी देवीलाल की विरासत पर चल रही पार्टी अचानक पिछले साल दो फाड़ हो गई. ओमप्रकाश चौटाला के पौत्र दुष्यंत चौटाला ने अलग होकर जननायक जनशक्ति पार्टी बना ली.
लेकिन इन चुनावों में इनेलो के सभी उम्मीदवारों की ज़मानत भी ज़ब्त भी हो गई. साथ ही इस बार जेजेपी को भी आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन का कोई फ़ायदा नहीं हुआ.
विधानसभा चुनावों में जेजेपी और इनेलो को इन चुनावों में फायदा नहीं होगा क्योंकि मतदाता नाराज़ है. उनका कहना है, "जब इनेलो के बिखराव से पहले बसपा का समझौता हुआ तो लगा कि इनकी सरकार आ सकती है. लेकिन इनेलो के बिखराव ने मतदाता को बेचैन कर दिया और इन लोकसभा चुनाव में उनका वोट कांग्रेस और बीजेपी में चला गया."
वहीं फिलहाल इनेलो संभाल रहे अभय चौटाला की इतनी स्वीकार्यता नहीं है. हालांकि उनके पिता ओम प्रकाश चौटाला को भी अपनी स्वीकार्यता बनाने में वक्त लगा था. जब देवीलाल ने उन्हें अपना उत्तराधिकारी बनाया तो उनके ख़िलाफ़ पार्टी में भी विद्रोह हुआ था. एमएलए पार्टी छोड़ गए थे और आज एक बार फिर वही स्थिति है."
बीजेपी दोहरा पाएगी विधानसभा में प्रदर्शन
इन लोकसभा चुनावों में कांग्रेस हिसार सीट को छोड़कर सभी सीटों पर दूसरे स्थान पर रही है. इसलिए माना जा रहा है कि विधानसभा में कांग्रेस और बीजेपी में ही सीधी टक्कर देखने को मिलेगी.
21 अक्टूबर को विधानसभा चुनाव के मतदान होंगे और इतनी जल्दी कांग्रेस के लिए वापसी करना मुश्किल है. लोकसभा चुनावों में बीजेपी को 90 हल्कों में से 79 हल्कों में बढ़त मिली है. पिछली बार भी बीजेपी ने 47 सीटें जीती थी. ऊपर से कांग्रेस में अभी दोषारोपण का दौर चल रहा है. हुड्डा कैंप के लोग अशोक तंवर के इस्तीफ़े की मांग कर रहे हैं."
विधानसभा के नतीजे लोकसभा से थोड़े अलग होंगे क्योंकि मतदाता समझदार है कि उसे पंचायत चुनाव में किसे चुनना है, नगर निगम में किसे चुनना है और लोकसभा में किसके लिए वोट करना है.
लेकिन वे राज्य की खट्टर सरकार को भी श्रेय देते हैं कि बीजेपी सरकार ने ग्रुप डी की नौकरियों का जो नतीजा निकाला उसका असर मतदाता पर पड़ा.मनोहर लाल खट्टर के कार्यकाल को भी लोगों ने सराहा है ख़ासकर नौकरियों में पारदर्शिता और ऑनलाइन तबादलों की वजह से. लेकिन ये भी है कि लोकसभा में लोग उम्मीदवार के नाम पर कम और मोदी के नाम पर वोट कर रहे थे. तो अभी नतीजों को लेकर कुछ साफ़ नहीं कहा जा सकता.
फरवरी 2016
जाट आंदोलन की हिंसा में जातिवाद का जो
ज़हर घुला, उसका फ़ायदा बीजेपी को मेयर और लोकसभा के
चुनावों में हुआ. वहीं कांग्रेस अभी संगठन के नाम पर बहुत कमज़ोर है.
आंकड़े के हिसाब से किस को बढ़त
बीजेपी ने 2009 विधानसभा से लगातार अपने वोट शेयर में बड़ा इज़ाफ़ा किया है. 2009 में बीजेपी के पास महज़ 9 फीसदी वोट थे और सिर्फ़ 4 सीटें मिली थी.
लेकिन 2014 में 47 सीटें मिली और वोट शेयर 34.7 फीसदी हो गया जो कि 2014 लोकसभा चुनावों के वोट शेयर के आस-पास ही था.
वहीं कांग्रेस ने 2009 विधानसभा चुनाव में 40 सीटें जीती थी और वोट शेयर लगभग 36 फीसदी था.लेकिन 2014 में सिर्फ 15 सीटें मिली और वोट शेयर 21 फीसदी पर आ गिरा जो कि लोकसभा चुनावों के वोट शेयर के आस-पास ही था.
लेकिन इस बार 2019 लोकसभा चुनावों में बीजेपी के साथ-साथ कांग्रेस के वोट शेयर में भी इज़ाफ़ा हुआ है जिसका एक फैक्टर इनेलो के वोटों का बंट जाना भी हो सकता है.
बीजेपी ने 58 फीसदी वोट हासिल किए हैं और कांग्रेस ने 28 फीसदी. लगभग 30 फीसदी वोटों के अंतर को पाटना कांग्रेस के लिए बहुत मुश्किल होगा.
आंकड़े के हिसाब से किस को बढ़त
बीजेपी ने 2009 विधानसभा से लगातार अपने वोट शेयर में बड़ा इज़ाफ़ा किया है. 2009 में बीजेपी के पास महज़ 9 फीसदी वोट थे और सिर्फ़ 4 सीटें मिली थी.
लेकिन 2014 में 47 सीटें मिली और वोट शेयर 34.7 फीसदी हो गया जो कि 2014 लोकसभा चुनावों के वोट शेयर के आस-पास ही था.
वहीं कांग्रेस ने 2009 विधानसभा चुनाव में 40 सीटें जीती थी और वोट शेयर लगभग 36 फीसदी था.लेकिन 2014 में सिर्फ 15 सीटें मिली और वोट शेयर 21 फीसदी पर आ गिरा जो कि लोकसभा चुनावों के वोट शेयर के आस-पास ही था.
लेकिन इस बार 2019 लोकसभा चुनावों में बीजेपी के साथ-साथ कांग्रेस के वोट शेयर में भी इज़ाफ़ा हुआ है जिसका एक फैक्टर इनेलो के वोटों का बंट जाना भी हो सकता है.
बीजेपी ने 58 फीसदी वोट हासिल किए हैं और कांग्रेस ने 28 फीसदी. लगभग 30 फीसदी वोटों के अंतर को पाटना कांग्रेस के लिए बहुत मुश्किल होगा.
हलोपा का त्रिकोणीय समीकरण
हरियाणा लोकहित पार्टी को आप नजरअंदाज
नहीं कर सकते है। सिरसा के जानकार मानते है कि बहुमत से दूर पार्टी को हरियाणा
लोकहित पार्टी समर्थन देगी और सरकार बनने पर अहम पद को लेकर साझेदारी करेगी। सिरसा
और रनियां के गांवों की स्थिति साफ है। समर्थक गोपाल कांडा #gopalkanda, और गोबिंद
कांडा #gobindkanda को पसंद भी कर रहे है। #gopalkanda, सिरसा
में राजनीतिक समीकरण बनाने में माहिर है। उनको पता है कि सिरसा और रनियां दो सीट
विजयी होने के बाद अपने पक्ष में सत्ता को कैसे करना है? मौके
की तलाश में गोपाल कांडा #gopalkanda, राजनीति समीकरण पर नजर बनाए हुए है। सिरसा में
कांग्रेस पहले ही गायब है और यहां सीधा मुकाबला बीजेपी बनाम हलोपा का है।
गोपाल कांडा #gopalkanda, के
इतिहास पर अगर नजर डालें, तो संघ से उनके परिवार के लोगों का जुड़ाव रहा है। एक
समय उनके पिता स्व. मुरलीधर कांडा हरियाणा संघ के अध्यक्ष रहे है। हालांकि गोपाल
कांडा , बीजेपी के साथ गठबंधन को लेकर कुछ कहने से बचते रहे है. लेकिन राजनीतिक
में कब क्या हो जाए, इसका किसी को पता नहीं। पार्टी ने अपना रूख शुरू से साफ कर
रखा कि उनका काम जन सेवा करना है, राजनीति करना नहीं है। लेकिन यह भी सही है कि
राजनीति के बिना जनसेवा नहीं की जा सकती।
#"goaplkanda," <gopalkanda> #gopalkanda, gopalkanda? kanda
Tuesday, September 24, 2019
हरियाणा चुनाव : एक वोट बनाम एक नोट
80 में से 78 बाहर वालों को रोजगार, फिर भी कहते हो 75 पार, पीएचडी पास को लगा दिया चौकीदार, फिर भी कहते हो 75 पार, 80 को दिया मार, फिर भी कहते हो 75 पार, साथियों 29 दिन बच गए हो जाओ तैयार, अबकी बार कर दो भाजपा को हरियाणा से बाहर। ऐसा मैं नहीं
कह रहा हूं, दुष्यंत चौटाला जी के भाषण का एक हिस्सा इसको समझ लीजिये. क्षेत्रीय
दल हरियाणा में इस बार जोर शोर से चुनावी मैदान में पहुंच गई है।
हरियाणा में कई दिग्गज नेता परिवारवाद से बाहर
निकल गए और कुछ परिवारवाद में ही उलझे पड़े हुए है. कांग्रेस हरियाणा में कहा और
किस मुकाम पर है, किसी को पता नहीं है। कुमारी शैलेजा एक अच्छी नेत्री से ज्यादा
कांग्रेस की वफादार है.इस कारण से एकजुटता की जगह पार्टी में दरार है.
रोहतक में कड़ी टक्कर बीजेपी बनाम क्षेत्रीय
पार्टियों के बीच बनी हुई है. सिरसा में अभी तक गोपाल कांडा #gopalkanda, हरियाणा लोकहित पार्टी का अपनी ही वर्चस्व है। गोपाल कांडा की
अलग विचारधारा होने के कारण उनकी पार्टी प्रमुखता मिल रही है। लेकिन सिरसा में
गोपाल कांडा जीते हुए उम्मीदवार के तौर पर बताए जा रहे है,लेकिन राजनीति ज्योतिषि
इस आकंलन को जल्दीबाजी बता रहे है। फिर भी राजनीति का मुख्य समीकरण उम्मीदवारों की
घोषणा के बाद ही पता चलेगा।
भाजपा 75 पार का
नारा दे रही, मौजूदा विधायकों का टिकट कट सकता
भाजपा लोकसभा चुनाव में 10 की 10 सीटें जीतकर विधानसभा में 75 पार का नारा देकर चल रही है। लोकसभा चुनाव के बाद से लगातार प्रचार
अभियान जारी है। सीएम पूरे प्रदेश में घूमकर जनआशीर्वाद यात्रा कर चुके हैं। भाजपा
में मौजूदा स्थिति ये है कि एक सीट पर कई-कई दावेदार हैं। दूसरी पार्टियों के नेता
अपनी पार्टियां छोड़कर भाजपा में शामिल हो रहे हैं। ऐसे में सीटों की दावेदारी
ज्यादा बढ़ गई है। खुद सीएम मान चुके हैं कि कुछ मौजूदा विधायकों की टिकट कटना तय
है। चाहे जो मर्जी हो लेकिन इस समय सबसे मजबूत स्थिति में भाजपा है।
हुड्डा
के आने से रेस में आई कांग्रेस
लोकसभा चुनाव में महज हिसार सीट को
छोड़ दें तो कांग्रेस 9 सीटों पर दूसरे नंबर पर रही। इस
चुनाव में भी भाजपा की टक्कर कांग्रेस से मानी जा रही है। तंवर को प्रदेशाध्यक्ष
पद से हटा दिए जाने के बाद सैलजा को प्रदेशाध्यक्ष बनाया गया है और हुड्डा को
सीएलपी लीडर का पद दिया गया है। भले ही नेतृत्व परिवर्तन हो गया हो लेकिन गुटबाजी
अभी भी कम नहीं हुई है। हां, हुड्डा के आ जाने से कांग्रेस
रेस में जरूर आ गई है लेकिन देरी से फैसला होने का नुकसान भी उन्हें उठाना पड़ रहा
है। अब इतना समय नहीं बचा है कि वे संगठन मजबूत कर सकें। वे सीधे चुनाव में उतरने
जा रहे हैं। वहीं भूपेंद्र हुड्डा और कुलदीप बिश्नोई सीबीआई, ईडी और आयकर विभाग के चक्कर लगा रहे हैं।
इनेलो से
मजबूत हुई जेजेपी
2014 में भाजपा के बाद 19 सीटें लेकर दूसरा सबसे बड़ा दल बनने वाली इनेलो अब बिल्कुल बिखर
चुकी है। चौटाला परिवार टूटने के बाद जजपा का गठन हुआ। जजपा ने सबसे ज्यादा इनेलो
को नुकसान पहुंचाया है। इनेलो के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष
से लेकर पार्टी के बड़े नेता और कई मौजूदा विधायक इस्तीफा देकर जजपा, कांग्रेस और भाजपा में शामिल हो चुके हैं। ऐसे में जजपा मौजूदा समय
में इनेलो से मजबूत नजर आ रही है। इनेलो के लिए प्रत्याशी ढूंढना ही इस चुनाव में
बड़ी चुनौती होने वाला है। अभय घोषणा कर चुके हैं कि पार्टी 50 प्रतिशत युवाओं को टिकट देगी, पार्टी में पुराने नेता छोड़कर
जा चुके हैं। वहीं जजपा का किसी पार्टी से गठबंधन नहीं हो सका है। जजपा 90 सीटों पर उम्मीदवार उतारने का दावा कर रही है लेकिन उसके पास भी
उम्मीदवारों का टोटा है। ऐसे में इनेलो और जजपा दोनों के लिए चुनौती है।
आप और
बसपा का भी किसी से नहीं गठबंधन दोनों उतरेंगे अलग-अलग
आम आदमी पार्टी का लोकसभा चुनाव में
जजपा से गठबंधन था लेकिन उनका गठबंधन विधानसभा चुनाव आते-आते टूट गया। वहीं बसपा
की बात करें तो बसपा ने पहले इनेलो से जींद उपचुनाव में गठबंधन किया था, हार के बाद वह टूट गया। लोकसभा चुनाव में उन्होंने राजकुमार सैनी
की लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी से हाथ मिलाया, हार के बाद वह भी टूट गया। इसके
बाद विधानसभा के लिए जजपा से गठबंधन किया था लेकिन वह चुनाव से पहले ही टूट गया
है। बसपा भी अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा कर चुकी है। ऐसे में ये दल भी अकेले चुनाव
मैदान में उतरेंगे। इससे स्पष्ट है कि विपक्ष इस समय बिखराव की स्थिति में है।
हलोपा
के दो ही उम्मीदवार होंगे मैदान
सिरसा
और रनियां दोनों ही जगहों पर कांडा बंधुओं का वर्चस्व रहेगा। गोपाल कांडा के तेवर
आज बी बरकरार है, सिरसा में अकेले नेता है, जो बीजेपी को कड़ी टक्कर देंगे। बीजेपी
के तरफ से उम्मीदवार कौन होगा, यह कहां नहीं जा सकता है, क्योंकि पार्टी में
उम्मीदवारों की लिस्ट लंबी है। रानियां में हलोपा के तरफ से गोबिंद कांडा
उम्मीदवार होंगे। गोपाल कांडा खुद गोबिंद कांडा के लिये चुनावी प्रचार में हिस्सा
लेंगे। गोपाल कांडा जी का कहना है कि इस बार उनका मुख्य फोकस दो सीटों को विजयी
करना है, यहीं से पार्टी की नींव की नई शुरूआत होगी। क्योंकि पिछला अनुभव ज्यादा
बेहतर नहीं होने के कारण कोई भी रिस्क उठाना के मूड में नहीं है।
#gopalkanda, #gobindkanda
भाजपा लोकसभा चुनाव में 10 की 10 सीटें जीतकर विधानसभा में 75 पार का नारा देकर चल रही है। लोकसभा चुनाव के बाद से लगातार प्रचार अभियान जारी है। सीएम पूरे प्रदेश में घूमकर जनआशीर्वाद यात्रा कर चुके हैं। भाजपा में मौजूदा स्थिति ये है कि एक सीट पर कई-कई दावेदार हैं। दूसरी पार्टियों के नेता अपनी पार्टियां छोड़कर भाजपा में शामिल हो रहे हैं। ऐसे में सीटों की दावेदारी ज्यादा बढ़ गई है। खुद सीएम मान चुके हैं कि कुछ मौजूदा विधायकों की टिकट कटना तय है। चाहे जो मर्जी हो लेकिन इस समय सबसे मजबूत स्थिति में भाजपा है।
लोकसभा चुनाव में महज हिसार सीट को छोड़ दें तो कांग्रेस 9 सीटों पर दूसरे नंबर पर रही। इस चुनाव में भी भाजपा की टक्कर कांग्रेस से मानी जा रही है। तंवर को प्रदेशाध्यक्ष पद से हटा दिए जाने के बाद सैलजा को प्रदेशाध्यक्ष बनाया गया है और हुड्डा को सीएलपी लीडर का पद दिया गया है। भले ही नेतृत्व परिवर्तन हो गया हो लेकिन गुटबाजी अभी भी कम नहीं हुई है। हां, हुड्डा के आ जाने से कांग्रेस रेस में जरूर आ गई है लेकिन देरी से फैसला होने का नुकसान भी उन्हें उठाना पड़ रहा है। अब इतना समय नहीं बचा है कि वे संगठन मजबूत कर सकें। वे सीधे चुनाव में उतरने जा रहे हैं। वहीं भूपेंद्र हुड्डा और कुलदीप बिश्नोई सीबीआई, ईडी और आयकर विभाग के चक्कर लगा रहे हैं।
2014 में भाजपा के बाद 19 सीटें लेकर दूसरा सबसे बड़ा दल बनने वाली इनेलो अब बिल्कुल बिखर चुकी है। चौटाला परिवार टूटने के बाद जजपा का गठन हुआ। जजपा ने सबसे ज्यादा इनेलो को नुकसान पहुंचाया है। इनेलो के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष से लेकर पार्टी के बड़े नेता और कई मौजूदा विधायक इस्तीफा देकर जजपा, कांग्रेस और भाजपा में शामिल हो चुके हैं। ऐसे में जजपा मौजूदा समय में इनेलो से मजबूत नजर आ रही है। इनेलो के लिए प्रत्याशी ढूंढना ही इस चुनाव में बड़ी चुनौती होने वाला है। अभय घोषणा कर चुके हैं कि पार्टी 50 प्रतिशत युवाओं को टिकट देगी, पार्टी में पुराने नेता छोड़कर जा चुके हैं। वहीं जजपा का किसी पार्टी से गठबंधन नहीं हो सका है। जजपा 90 सीटों पर उम्मीदवार उतारने का दावा कर रही है लेकिन उसके पास भी उम्मीदवारों का टोटा है। ऐसे में इनेलो और जजपा दोनों के लिए चुनौती है।
आम आदमी पार्टी का लोकसभा चुनाव में जजपा से गठबंधन था लेकिन उनका गठबंधन विधानसभा चुनाव आते-आते टूट गया। वहीं बसपा की बात करें तो बसपा ने पहले इनेलो से जींद उपचुनाव में गठबंधन किया था, हार के बाद वह टूट गया। लोकसभा चुनाव में उन्होंने राजकुमार सैनी की लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी से हाथ मिलाया, हार के बाद वह भी टूट गया। इसके बाद विधानसभा के लिए जजपा से गठबंधन किया था लेकिन वह चुनाव से पहले ही टूट गया है। बसपा भी अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा कर चुकी है। ऐसे में ये दल भी अकेले चुनाव मैदान में उतरेंगे। इससे स्पष्ट है कि विपक्ष इस समय बिखराव की स्थिति में है।
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